क्षतिग्रस्त बच्चों के लिए
मार्गदर्शिका – परिचय
I.
भूमिका
II.
दृष्टि, निम्न में सहायता प्रदान करती है
III.
दृष्टि शक्ति में कमी सह संबंध निम्न से होता
IV.
समस्या इंगित करते दृष्टि व्यवहार
V.
समस्याओं की ओर इंगित करते दृष्टि संकेत
भूमिका
हम, यद्यपि अपनी दृष्टि द्वारा प्राप्त
सूचना के आधार पर ही कार्य करते हैं, फिर भी, बहूत ही कम संदर्भों में हम देखने की
प्रक्रिया को महत्व देते हैं। दृष्टि तथा श्रवण को दूरस्थ संवेदन कहा जाता है।
रुचि और स्पर्श अपने शरीर के संवेदन महसूस करते हैं, परंतु संवेदन हमें अपने शरीर से बाहर
की सूचनाएँ प्रदान करता है।
दृष्टि, निम्न में सहायता प्रदान करती है
पर्यावरण में मौजूद सहायता करने वालों
के साथ – साथ
खतरनाक तत्वों से हमने सर्तक करती है।
वस्तुओं को देखकर सीखा जाता है।
अपने पर्यावरण में मुक्त रूप से चलने – फिरने में
ध्वनि के स्रोत को ढूंढ निकालने में
वस्तुओं तक पहुँचने में
वस्तुओं के आकारों, रंगों और कार्यों को मिला देने में
दृष्टि सभी संवेदनों से प्रमुख है। इस
संवेदन के द्वारा प्राप्त होने वाली सूचना की किस्म अतुलनीय होती है। विकास के
प्रत्येक क्षेत्र के भीतर स्वतंत्र रूप से कार्य करने और अधिकांश व्यवहारों को
करने के लिए दृष्टि का उपयोग करने की योग्यता बहुत महत्वपूर्ण होती है। वस्तुओं को
पकड़ने, उनकी
और देखने और रखपाल की ओर देखकर मुस्कुराने, खिलौने के साथ खेलने, छिपे खिलौनों या वास्तुशास्त्रओं को
तलाशने, सहयोगियों
के साथ खेलने आदि जैसी बातें दृष्टि क्षति के कारण प्रभावित हो जाती हैं। दृष्टि
एक सतत या सिलसिलेवार या या निरंतर चलने
वाली प्रक्रिया है, जबकि अन्य संवेदी क्षणिक और तरंगी होती हैं। दृष्टि अन्य संवेदनाओं
के लिए शिक्षक की तरह काम करती है।
जब बच्चा पैदा होता है तो उसकी दृष्टि
क्षमता बहुत ही सीमित होती है। यद्यपि भ्रूण के जीवनकाल में सबसे पहले बनने वाला
संवेदी अंग यही है, फिर भी जन्म के समय का सबसे कम विकसित दृष्टि संवेदन ही होता है।
दृष्टि कौशलों का विकास सुव्यवस्थित
सिलसिला है। जन्म के समय दृष्टि व्यवहार प्राथमिक रूप से परवर्ती होते हैं और
बच्चे की दृष्टि प्रौढ़ व्यक्ति की दृष्टि की तरह तेज नहीं होती। सामान्य दृष्टि
विकास होने के लिए, शारीरिक और दैहिक प्रक्रियाओं का घटना जरूरी है। यह माना जाता है कि
ये प्रक्रियाएं आरंभिक दृष्टि अनुभवों और साथ ही साथ तांत्रिक परिपक्वन पर आश्रित
होती है।
दृष्टि सीखी हुई प्रक्रिया होती है जो, जिसे देखा जाता है उसे अर्थ प्रदान
करती है। आरंभ में, बच्चा हल्के प्रेरकों पर ध्यान देने योग्य होता है और बाद में वह
प्रकाश का अनुसरण करना सीख जाता है। यद्यपि लगता है कि बच्चा, अपने आरंभिक जीवन में अपनी माँ का
चेहरा देख रहा है, परंतु सच्चाई यह है कि 3 महीनों की आयु में पहुँचने के बाद ही वह
चेहरों की साफ तौर से पहचानने का कौशल हासिल कर पाता है।
ये आरंभिक कौशल ही परिपक्व दृष्टि
कौशलों के विकास जैसे – दृष्टि मार्गदार्शिता पहुँच, माता – पिता के चेहरों की आकृतियों या
अभिव्यक्तियों की नकल करने, गुड़िया, खिलौने आदि के साथ खेलने के लिए प्रगति आधार बनता है।
दृष्टि शक्ति में कमी सह संबंध निम्न
से होता
पर्यावरण के साथ तालमेल बनाने में कमी, खिलौनों से खेलता है और समकक्ष के साथ
पारस्परिक प्रक्रिया आरंभ करता है।
शारीरिक और सामाजिक अलगाव की प्रवृति।
आत्म गौरव के विकास के प्रति उदासीनता।
मितभाषी और सामाजिक कौशलों की कमी।
चिंता की भावना।
वे नियंत्रित बने रहना, कम आराम करना और जोखिमों को उठाने के
प्रति कम उत्सुक बने रहने का अनुभव करते हैं।
अनुभवीय और पर्यावरणीय वंचन।
अपने बच्चे की दृष्टि की जाँच करने के
लिए निम्नलिखित चार्ट का उपयोग करें। यह बच्चे की आयु के अनुसार दृष्टि कौशलों को
दर्शाता है।
इस जाँच सूची में बचकने के कौशल करने
की क्षमता के साथ जिस क्षेय्र और आयु मेव्ह उन्हें करता दर्शाया गया है, जो उसे सामान्य रूप में हासिल हो जाते
हैं। यदि आपको लगता है कि आपका बच्चा अपनी आयु के अनुसार उक्त कार्यकलाप नहीं करता
है, तो
अप अपने बच्चे की पसंद के आवश्यक कार्यकलाप खोजने के लिए विकासीय कार्यकलापों केकक
में जाएँ सुदृश्य एकक में जाएँ।
यदि आप में से कोई भी व्यवहार अपने बचे
में देखें तो तत्काल नेत्र चिकित्सक/डॉक्टर से संपर्क कर उनका परामर्श लें।
यदि निम्न में से कोई हो तो दृष्टि
समस्या का संदेह करें।
3
महीनों की आयु में आँख से आँख न मिलाता हो।
3 महीनो की आयु के उपरांत कमजोर लक्ष्य
बंधन।
6 महीनों की उम्र में पहुँचने के बाद
भी अपर्याप्त परिशुद्धता।
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