उत्तर प्रदेश 2024 में गन्ने की वैज्ञानिक खेती कैसे करें

उत्तर प्रदेश 2024 में गन्ने की वैज्ञानिक खेती कैसे करें

उत्तर प्रदेश 2024 में गन्ने की वैज्ञानिक खेती कैसे करें

How to do scientific farming of sugarcane in Uttar Pradesh 2024



 

1.     गन्ने की फसल चक्र

2.     गन्ने फसल के लिए खेत की तैयारी

3.     बुवाई का समय

4.     गन्ने की उपज विधि

5.     पंक्तियों के मध्य की दूरी एवं बीज

6.     बीज गन्ना

7.     गन्ने की बुवाई

8.     गन्ने की बुवाई की विधियॉं

9.     गुड़ाई

10.                        सूखी पत्ती बिछाना

11.                        गन्ने में खर-पतवार नियंत्रण

12.                        द्विबीज पत्रीय खर-पतवार

13.                        गन्ने की खेती में दवा का प्रयोग

14.                        रासायनिक/यांत्रिक नियन्त्रण

15.                        रसायनों के छिड़काव में विशेष सावधानियॉं

16.                        मिट्‌टी चढना

17.                        गन्ने फसल की बॅंधाई

18.                        सर्पिलाकार बॅंधाई

19.                        फसल की सिंचाई

20.                        उर्वरक का प्रयोग

21.                        गन्ने के साथ अन्तः फसल

22.                        पेड प्रबन्ध

गुड़ उत्पादन हेतु गन्ने की उन्नतिशील जातियॉं

गन्ने की फसल चक्र

एक निश्चित भू-भाग पर निश्चित समय में भूमि की उर्वरता को बिना क्षति पहुंचाये, कम से कम व्यय करके क्रमबद्ध फसलें उगाकर अधिकतम लाभ अर्जित करने की प्रक्रिया को फसल चक्र कहते हैं।

 

आदर्श फसल-चक्र वह है जो परिवार के सदस्यों एवं क्षेत्र के श्रमिकों को रोजगार के अधिकतम अवसर प्रदान कर सके तथा कृषि यंत्रों के आर्थिक दृष्टिकोण से लाभप्रद उपभोग के साथ ही कम से कम समय में अधिकतम उत्पादन सुनिश्चित कर सके। गन्ना फसल के साथ उत्तर प्रदेश में प्रचलित कुछ आदर्श चक्र निम्न प्रकार है -

 

पश्चिमी क्षेत्र -

चाय-लाही-गन्ना-पेड़ी़+लोबिया(चारा), गेहूँ

धान-बरसीम-गन्ना-पेड़ी+लोबिया(चारा)

धान-गेहूँ-गन्ना पेड़ी-गेहूँ-मूंग

 

मध्य क्षेत्र -

धान-राई-गन्ना-पेड़ी-गेहूँ

हरी खाद-आलू-गन्ना-पेड़ी-गेहूँ

धान-गेहूँ-गन्ना-पेड़ी+लोबिया(चारा)

पूर्वी क्षेत्र -

धान-लाही-गन्ना-पेड़ी-गेहूँ

धान-गन्ना-पेड़ी-गेहूँ

धान-गेहूँ-गन्ना-पेड़ी+लोबिया(चारा)

गन्ने फसल के लिए खेत की तैयारी

दोमट भूमि जिसमें गन्ने की खेती सामान्यत: की जाती है, में 12 से 15 प्रतिशत मृदा नमी अच्छे जमाव के लिये उपयुक्त है। यदि मृदा नमी में कमी हो तो इसे बुवाई से पूर्व पलेवा करके पूरा किया जा सकता है। ओट आने पर मिट्टी पलटने वाले हल से एक गहरी जुताई तथा 2-3 उथली जुताइयॉं करके खेत में पाटा लगा देना चाहिये। खेत में हरी खाद देने की ​स्थिति में खाद को सड़ने के लिये पर्याप्त समय (लगभग एक से डेढ़ माह) देना चाहिये।

 

बुवाई का समय

गन्ने के सर्वोत्तम जमाव के लिये 30-35 डिग्री से0 वातावरण तापक्रम उपयुक्त है। उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में तापक्रम वर्ष में दो बार ​सितम्बर-अक्टूबर एवं फरवरी, मार्च आता है।

 

बुवाई का समय

 

शरद  15 सितम्बर से अक्टूबर

बसन्त

पूर्वी क्षेत्र 15 जनवरी से फरवरी

मध्य क्षेत्र 15 फरवरी से मार्च

पश्चिमी क्षेत्र 15 फरवरी से मार्च

विलम्बित समय अप्रैल से 16 मार्च

गन्ने की उपज विधि

खेत की तैयारी-पलेवा के बाद 3-4 जुताई।

गन्ने की उपयुक्त जातियों जैसे को0शा0 767, 88216, 88230, 95255, 94257 व को0शा0 94270 को चुनें।

स्वस्थ गन्ने का ऊपरी भाग बोयें।

बीजोपचार - बीज गन्ने को 4-6 घण्टे पानी में भिगोकर तथा पारायुक्त रसायन में डुबो लें।

गन्ने की पंक्तियों के बीच दूरी 60 से0मी0 रखें।

बुवाई के समय उपयुक्त नमी रखें व अन्धी गुड़ाई करें।

नेत्रजन के प्रयोग में विलम्ब नहीं, आधी मात्रा बुवाई के समय शेष आधी जमाव होने पर ​सिंचाई के 2-3 दिन बाद।

सही समय पर हल्की व बार-बार 10-15 दिन के अन्तर पर ​सिंचाई।

फसल सुरक्षा, गुड़ाई व बंधाई समय पर।

पंक्तियों के मध्य की दूरी एवं बीज

सामान्यत: पंक्ति से पंक्ति के मध्य 90 से0मी0 दूरी रखने एवं तीन आंख वाले टुकड़े बोने पर लगभग 37.5 हजार टुकड़े अथवा गन्ने की मोटाई के अनुसार 40 से 60 कुन्तल बीज गन्ना प्रति हेक्टयर की दर से प्रयोग किया जाता है। पंक्तियों के मध्य की दूरी 60 से0मी0 रखने तथा तीन आंख वाले टुकड़े लेने पर इनकी संख्या लगभग 56.25 हजार प्रति हेक्टयर हो जाती है।

 

पंक्तियों के मध्य की दूरी 90 सेंटीमीटर

 

यह सामान्य परि​स्थितियों एवं गन्ने के साथ अन्त: फसल लेने की दशा में सर्वाधिक उपयुक्त दूरी है।

 

पंक्तियों के मध्य की दूरी 60 से0मी0

 

विलम्ब से गन्ना बोवाई की दशा में, असिंचित एवं कम सिंचाई की उपलब्धता में, कम  नेत्रजन दिये जाने की दशा में तथा अधिक ठण्ड वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त हैं।

 

बीज गन्ना

सामान्यत: स्वीकृत पौधशालाओं से संस्तुत उन्नतशील गन्ना प्रजातियों का रोग व कीटमुक्त, शत-प्रतिशत शुद्ध 12 माह की आयु की फसल से बीज का चुनाव किया जाता है किन्तु वैज्ञानिक प्रयोगों से यह सिद्ध हुआ है कि गन्ने के 1/3 ऊपरी भाग का जमाव अपेक्षाकृत अच्छा होता है तथा 2 माह की फसल की तुलना की में 7-8 माह की फसल से लिये गये बीज का जमाव भी अपेक्षाकृत अच्छा होता है। बोने से पूर्व गन्ने के दो अथवा तीन ऑंख वाले टुक्ड़े काटकर कम से कम 2 घण्टे पानी में डुबो लेना चाहिये, तदुपरान्त किसी पारायुक्त रसायन (एरीटान 6 प्रतिशत या बैगलाल 3 प्रतिशत) के क्रमश: 0.25 या 0.5 घोल में शोधित कर लेना चाहिये। बीज शोधन के लिये बावस्टीन 0.1 प्रतिशत घोल का भी प्रयोग किया जा सकता है।

 

गन्ने की बुवाई

सामान्यतः आदर्श परिस्थितियों में तीन ऑंख वाले पैडे कूडों अथवा नालियों में इस प्रकार डाले जाते हैं कि प्रति फुट कम से कम ऑंख समायोजित हो जाये। अपेक्षाकृत अच्छे जमाव के लिये दो ऑंख वाले पैडे प्रति फुट तीन ऑंख की पर से भी प्रयोग किये जा सकते हैं। बुवाई के उपरान्त नाली में पैडो के ऊपर गामा बी०एच०सी० 20ई.सी. 6.25लीटर या क्लोरपाइरीफस 20 प्रतिशत घोल 5 लीटर को 1875 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर हजारे से छिड कना चाहिए अथवा फोरेट 10 जी.25 कि०गो० या सेविडाल 4:4जी. 25कि०ग्रा० या लिण्डेन 6 जी.20 कि०ग्रा०/हे० की दर से पैड ो के ऊपर प्रयोग करना चाहिए। नालियों को फावड या देशी हल से तुरन्त पाट कर खेत में पाटा लगा देना चाहिए। इससे दीमक व अंकुरवेधक नियंत्रित होते हैं।

 

अन्धी गुड़ाई

 

समतल विधि से गन्ना बुवाई के एक सप्ताह में अथवा यदि वर्षा हो जाये अथवा शीघ्र जमाव के लिये हल्की सिंचाई की गयी हो तो अंधी गुड़ाई आवश्यक है। ध्यान रहे कि अंधी गुड़ाई की गहराई अधिकतम 4-5 से0 मी0 से अधिक न हो।

 

गन्ने की बुवाई की विधियॉं

समतल विधि

 

इस विधि में 90 से०मी० के अन्तराल पर 7-10 सें०मी० गहरे कुंड डेल्टा हल से बनाकर गन्ना बोया जाता है। वस्तुतः यह विधि साधारण मृदा परिस्थितियों में उन कृषकों के लिये उपयुक्त हैं जिनके पास सिंचाई, खाद तथा श्रम के साधन सामान्य हों। बुवाई के उपरान्त एक भारी पाटा लगाना चाहिये।

 

नाली विधि

 

इस विधि में बुवाई के एक या डेढ़ माह पूर्व 90 से०मी० के अन्तराल पर लगभग 20-25 से०मी० गहरी नालियॉं बना ली जाती हैं। इस प्रकार तैयार नाली में गोबर की खाद डालकर सिंचाई व गुडई करके मिट्‌टी को अच्छी प्रकार तैयार कर लिया जाता है। जमाव के उपरान्त फसल के क्रमिक बढ वार के साथ मेड की मिट्‌टी नाली में पौधे की जड पर गिराते हैं जिससे अन्ततः नाली के स्थान पर मेड तथा मेड के स्थान पर नाली बन जाती हैं जो सिंचाई नाली के साथ-साथ वर्षाकाल में जल निकास का कार्य करती है। यह विधि दोमट भूमि तथा भरपूर निवेश-उपलब्धता के लिये उपयुक्त है। इस विधि से अपेक्षाकृत उपज होती है, परन्तु श्रम अधिक लगता है।

 

दोहरी पंक्ति विधि

 

इस विधि में 90-30-90 से०मी० के अन्तराल पर अच्छी प्रकार तैयार खेत में लगभग 10से०मी० गहरे कूंड बना लिये जाते हैं। यह विधि भरपूर खाद पानी की उपलब्धता में अधिक उपजाऊ भूमि के लिये उपयुक्त है। इस विधि से गन्ने की अधिक उपज प्राप्त होती है-

 

गुड़ाई

गन्ने में पौधों की जड़ों को नमी व वायु उपलब्ध कराने तथा खर-पतवार नियंत्रण के दृष्टिकोण से गुड़ाई अति आवश्यक है। सामान्यत: प्रत्येक सिंचाई के पश्चात एक गुड़ाई की जानी चाहिए। गुड़ाई करने से उर्वरक भी मिट्टी में अच्छी तरह मिल जाता है। गुड़ाई के लिए कस्सी/ फावड़ा/कल्टीवेटर का प्रयोग किया जा सकता है।

 

सूखी पत्ती बिछाना

ग्रीष्म ऋतु में मृदा नमी के संरक्षण एवं खर-पतवार नियंत्रण के लिए गन्ने की पंक्तियों के मध्य गन्ने की सूखी पत्तियों की 8-10 से.मी. मोटी तह बिछाना लाभदायक होता है। फौजी कीट आदि से बचाव के लिये सूखी पत्ती की तह पर मैलाथियान 5 प्रतिशत या लिण्डेन धूल 1.3 प्रतिशत का 25कि०ग्रा०/हे० या फेनवलरेट 0.4 प्रतिशत धूल को 25 कि०ग्रा० प्रति हेक्टेयर बुरकाव करना चाहिए। वर्षा ऋतु में सूखी पत्ती सड कर कम्पोस्ट खाद का काम भी करती है। सूखी पत्ती बिछाने से अंकुरवेधक का आपतन भी कम होता है।

 

गन्ने में खर-पतवार नियंत्रण

एक बीज पत्रीय खर पतवार

 

सेवानी, खरमकरा, दूब,मोथा जनकी, कांस एवं फुलवा आदि।

 

द्विबीज पत्रीय खर-पतवार

मकोय, हिरनखुरी, महकुवा, पत्थरचटटा, बड़ी दुदधी, हजारदाना, कृष्णनील, नर, नील कमली, मुमिया, तिनपतिया, जुगली जूट, बथुआ, खारथआ व लटजीरा आदि। खर पतवार से पड ने वाला विपरीत प्रभाव मुखयतः ग्रीष्मकाल (मध्य जून) तक ही होता है। तदोपरान्त यह नगण्य हो जाता है। सर्वाधिक हानिकर प्रभाव गन्ने के ब्यांत काल (अप्रैल-जून) में पडता है प्रयोगों से से सिद्ध हुआ है कि खरपतवार प्रतिस्पर्धा के कारण गन्ने की उपज 40 प्रतिशत तक कम हो जाती है। खरपतवार नियंत्रण हेतु निम्नलिखित विधियां अपनाई जा सकती है।

 

यांत्रिक नियंत्रण

 

गन्ने के खेत को कस्सी/कुदाली/फावड /कल्टीवेटर आदि से गुडई करके खरपतवार नियंत्रण किया जा सकता है। बुवाई के एक सप्ताह के अन्दर अंधी गुडई तथा प्रत्येक सिंचाई के बाद एक गुडई ओट आने पर करनी चाहिए श्रमिकों की कमी की स्थिति में गन्ने की बढवार के प्रारम्भ में दो बैलों अथवा ट्रैक्टर चलित कल्टीवेटर द्वारा अप्रैल जून में गुडई करनी चाहिए।

 

सूखी पत्ती बिछाना

 

जमाव पूरा हो जाने के उपरान्त मैदानी क्षेत्रों में गन्ने की दो पंक्तियों के मध्य 8-12 से०मी० सूखी पत्तियों की तह तथा तरायी क्षेत्रों 10-15 से०मी० मोटी तह बिछानी चाहिए। ध्यान रहे कि कीट एवं प्रभावित खेत से सूखी पत्ती नहीं लेना चाहिए। सावधानी के तौर 25 कि०ग्रा० मैलाथियान 5 प्रतिशत धूल या लिण्डेन 1.3प्रतिशत धूल या फेनवलरेट 0.4 प्रतिशत धूल का प्रतिहेक्टेयर की दर से सूखी पत्तियो पर धूसरण करना चाहिए।

 

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